कुछ रस्में, सात फेरे, सात वचन और एक बन्धन वा भी जन्म जन्मान्तर का। शादी का लेकर हर किसी की अपनी अपेक्षाएं व उम्मीदें होती हैं कुछ पूरी होती है तो कुछ नहीं भी, शत प्रतिशत संतुष्टि तो हमें किसी भी रिश्ते से नहीं मिलती है तो क्या हम उन रिशतों को तोड़नें का निर्णय इतनी आसानी से लेतें है जितनी आसानी से आज हम शादी तोड़नें का निर्णय लेनें लगें है चूंकि इस रिश्तें से बाहर आनें का विकल्प हमें नजर आता है तलाक के रूप् में तो फिर समस्या चाहे कितनी भी मामूली क्यों ना हो, हम समझौता नहीं करते, तलाक के मामले दिन-ब-दिन बढते ही जा रहें हैं,
यहां हम उन मामलों का जिक्र नहीं कर रहें हैं, जहां तलाक लेना ही एक मात्र रास्ता रह जाता है, लेकिन जहां शादी को बचाएं रखनें के कई रास्ते खुल जाते है, वहां भी अब हमारी कोशिश कम ही होती है उसे बचानें की, पहले माना जाता था कि शादी जन्म जन्मान्तर का साथ है, लेकिन अब एक जन्म भी निभाना मुशिकल हो रहा है, क्यों कि शादी फॉरएवर का कन्सेप्ट ही हम भूल चुकें हैं क्या वजह है कि ऐसा हो रहा है
रिश्ता निभाना या उससे बड़ी जिम्मेदारिया पूरी करना आजकल के कपल्स को बोझ लगता है कि हम क्यों सामनें वाले के अनुसार अपनी जिन्दगी जीं, हम क्यों एडजेस्ट करें …. आदि जब रिशते में इस प्रकार के विचार आनें लगतें हैं तो उसे तोड़ने के रास्ते हमें ज्यादा आसानी से नजर आनें लगतें हैं ।
शादी एक बन्धन और जिम्मेंदारी है, कोई चाहे या ना चाहे, इसमें त्याग समर्पण करना ही पड़ता है लेकिन इस तरह की भावनाएं व बातें आजकल हमें आउटडेटेड लगती है, हम अब रिश्तों में भी प्रेक्टीक्ल होते जा रहे है, जिससे भावनांए गौण और स्वार्थ की भावना महत्वपूर्ण होती जा रही है।
कपल्स आजकल अपनें ईगो को अपनें रिश्तें में भी बड़ा मानतें हैं, पति पत्नि दोनों में सें कोई भी झुकनें को तैयार नहीं होता। आपसी टकराव बढ़नें के साथ साथ मनमुटाव भी बढता जाता है और नतीजा होता है रिश्ते का अन्त।
आजकल लोग शादी तो करतें है लेकिन कई शर्तों के साथ और जहां कहीं भी उनकों लगता है कि उनकी आजादी या लाईफ स्टाइल में उनकी शादी एक बेड़ी या बन्धन बन रही है, तो उसे तोड़नें का निर्णय वो आसानी से ले लेतें हैं।
और भी है वजहें…………….
हालांकि जहां बात लड़की या लड़के के स्वाभिमान व अस्तित्व की रक्षा से जुड़ी हो और जहां शोषण हो रहा हो , तो वहां शादी फॉरएवर का कॉन्सेप्ट भूलना ही पड़ता है लेकिन यहां हम उन छोटी छोटी आतों का जिक्र कर रहें हैं, जिन्हे बड़ा मुद्दा बनाकर शादी जैसे महत्वपूर्ण बंधन को तोड़नें का सिलसिला बढ़ रहा है।
छोटी छोटी तकरार भी हमें इतनी हर्ट करती है कि हम उसे अपनें स्वाभिमान से जोड़नें लगतें हैं सहनशीलता अब लोगों में बहुत कम हो गयी है, यह भी एक बड़ी वजह है कि रिश्ते ताउम्र नहीं टिकते और जल्दी टूट जाते हैं।
वहीं दुसरी और रिशता बनाएं रखनें व उसमें बनें रहनें के लिए सारें समझौतें करनें की अपेक्षा अब भी स्त्रियों से ही की जाती है वक्त और दौर जब बदल रहा है, तो अपेक्षाओं के इस दायरे में पुरूषों को भी लाना ही होगा, रिशता बनाए रखनें की जितनी जिम्मेदारी स्त्रियों की होती है, उतनी ही पुरूषों की भी होती है, इस परिपाटी को अब तक बदलनें की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किये गए हैं इस ओर भी ध्यान देना जरूरी है ।
शादी जैसे रिशतों को आजकल की जनरेशना बहुत कैजुअली लेती है यदि इसके प्रति थोड़ा समान या गंभीरता दिखाए, तो रिशतें की मजबूती बढ़ेगी। समय व समाज में बदलाव के साथ साथ रिशतों के समीकरण व मायनें भी अब बदल रहें हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि हम रिशतों को इतनें हल्के में ले कि उन्हें आसानी से तोड़ सकें।